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DHARMCHAND JAIN - Editor of Jinwaani Magazine


मेरे जीवन निर्माण का स्थल रहा है यह संस्थानl इसमें आने पर मुझे संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं के अध्ययन का अवसर मिला तथा जीवन को एक दिशा प्राप्त हुईl गुरुजी श्री कन्हैया लाल जी लोढ़ा ने वैचारिक दृष्टि से समृद्ध बनाया तथा जीवन में आध्यात्मिक मूल्यों का सन्निवेश कियाl यहां रहकर सकारात्मक सोच के साथ भ्रातृत्व भाव से आगे बढ़ने का अमूल्य वातावरण प्राप्त हुआl राजस्थान विश्वविद्यालय से बीए ऑनर्स संस्कृत तथा एम. ए. संस्कृत में स्वर्ण पदक प्राप्त हुएl प्रतिवर्ष और कभी वर्ष में दो बार पूज्य आचार्य भगवंत श्री हस्तीमल जी महाराज साहब के सानिध्य का लाभ मिलता रहाl आर.आर.ए.एस की परीक्षा उत्तीर्ण करने पर जिला उद्योग अधिकारी एवं तहसीलदार में चयन भी हुआ, किंतु राजस्थान लोक सेवा आयोग के माध्यम से संस्कृत का व्याख्याता बनना पसंद कियाl उसके पश्चात् जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर में संस्कृत के प्रोफेसर एवं वहां के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष तथा कला संकाय केत अधिष्ठाता के रूप में सेवाएं देने का सौभाग्य प्राप्त हुआl सन 1994 के अक्टूबर से सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल ने मुझे जिनवाणी पत्रिका संपादन का दायित्व दियाl उसके पूर्व सन 1988 से मैं स्वाध्याय शिक्षा पत्रिका का संपादन कर रहा थाl इस संस्थान में अंग्रेजी सीखने का तथा जयपुर के प्रमुख श्रावकों तथा अनेक विशिष्ट व्यक्तियों से प्रेरणा प्राप्त हुईl यहां हर परिस्थिति में सुखी रहने के सूत्र प्राप्त हुएl मैं इस संस्थान से सदैव उपकृत अनुभव करता हूं।


 
 
 

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